साहित्य और समाज
साहित्य और समाज
साहित्य और समाज का आपस में गहरा नाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
मनोभावों को दे शब्द रूप साहित्य रचा जाता है
सत्य झलक समाज की साहित्य ही दिखलाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
सजग कर समाज को कर्तव्य अपना निभाता है
सही दिशा समाज को साहित्य ही दिखलाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
निराशा में भी आशा की किरण दिखलाता है
सोच-समझकर कर हमें चलना सिखलाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
कालजयी सृजन समाज ही करवाता है
साहित्य संरक्षण भी समाज करवाता है
समाज साहित्य का आधार कहलाता है।
कालजयी सृजन कर सृजन कार सम्मान पाता है
साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
