STORYMIRROR

Karil Anand

Abstract Classics

4  

Karil Anand

Abstract Classics

रसामृत – जीवन का मधु–मंदिर

रसामृत – जीवन का मधु–मंदिर

1 min
4


आज मैं लाया हूँ आनंद का प्याला — जीवन की मधुर सुधा,

प्रेम-सिंचित हथेलियों से अर्पित — दान यह दिव्य विधा।

हर हृदय के द्वार पे रख दूँ — यह अमर ज्योति का प्याला,

हर आत्मा को ऊष्मा दे — मेरा मधु-मंदिर निराला। 

तेरी प्यास बुझाऊँगा मित्र — शुद्ध चेतना के राग से,

हर बूँद गाए जीवन गान — हर घूँट बहे अनुराग से।

इस नश्वर स्वप्न-सभा में मैंने — सुख-दुःख सब ही पीया,

फिर भी छलकाता रहता हूँ — नव गीत, नव प्रभात जिया।

तू है सुधा, मैं हूँ पात्र — दोनों का संग अभेद,

तेरी कृपा से भर उठे मन — अमृत का असीम भेद।

ना पात्र रहे, ना सुधा रहे — बस एक आत्मा का आलय,

तेरी दृष्टि में मैं पाऊँ फिर — मन-मंदिर का मधुालय।

विचार की बेलों से झरता — कवि-मन का यह रसामृत,

हर पद्य बने स्वर्ण-पात्र — हर शब्द बने परम-स्मृत।

जो कोई इसे पिए, पावे — कवि की अग्नि की लय,

हर ग्रंथ बने मधुशाला — हर पाठक अमर रस पाय।

भावों के गहरे सागर से — मैं यह अमृत घोलता हूँ,

आकांक्षा के प्यालों में — प्रेम का ज्वार तोलता हूँ।

स्वप्नों के हस्तों से परोसूँ — यह चिर अमरता की धारा,

मैं हूँ साक़ी और अतिथि — पीनेवाला, देनेवाला सारा। 

Copyright ©️ करिल

 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract