रक्षा बंधन
रक्षा बंधन
ये जो राखी का है बंधन, ये बंधन है बड़ा पावन,
आगमन भादों का दिखता, अब जाने को है ये सावन,
कि रक्षा सूत्र से बंध कर तुम्हें बस ये ही प्रण करना,
बस बहन बेटी सुरक्षित हों मिटा डालो हरेक रावन।।
बहन ने, राखी के धागों में, हैं पिरोये याद के मोती,
वो बचपन का हंसी ठट्ठा, जो विदाई में थी वो रोती,
ये राखी तो बस एक एहसास और है जिम्मेदारी भी,
सुरक्षित मुझ से है भगिनी, न टपके आंख से मोती।।
थी कुछ मजबूरियां ऐसी, कि बहन राखी पे न आई,
कलाई भाई की हो सूनी, पर उसे ये बात ना भाई,
फिर चुन कर प्रेम के धागे, डाकिये मन के कबूतर से,
स्नेह बंधन की वो राखी, थी भावनाओं से बंधवाई।।
नहीं मोहताज एक दिन का, ये रिश्ता बहन भाई का,
ये एक धागा दिलाता याद, बस हर दम रहनुमाई का,
बड़ी किस्मत से मिलती हैं जहां में हम को ये बहनें,
इन्हीं से तो हैं बस जिंदा, अब मेरा दर्ज़ा ये भाई का।।