आडम्बर
आडम्बर
रीति रिवाज़ों के आडम्बर, लोक व्यवहार का धर्म
स्त्री की क्यों ढोती है समाज के सारे नियम
न रही इस घर की अपनी, न उस घर में उसका मान
खो दे स्वतंत्र पहचान भी अपनी, क्यों खो गया अपना नाम
कन्या कहकर पूजें जिसको
अजन्मी का करें संहार
शर्म लिहाज़ रिवाज़ के परदे
खो गया स्वतन्त्र विचार
जहाँ नहीं स्त्री को आज़ादी
वो त्रिशंकु रहे समाज
माँ बेटी की पद से ऊपर
हर स्त्री की अपनी पहचान|
