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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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रिश्तों की कद्र

रिश्तों की कद्र

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रिश्ते हैं रिश्तों का क्या?

नया पुराना, अपना, पराया क्या?

खून का या आत्मीयता का क्या?

रिश्ता तो बस रिश्ता होता है।

जिसकी कद्र हमें आपको करना होता है

पर कोई जोर दबाव नहीं होता है

जोर दबाव में रिश्तों का आत्मविश्वास

दम तोड़ बेदम हो जाता है,

रिश्तों की कद्र करने की बजाय

महज औपचारिकताओं की पूर्ति का माध्यम हो जाता है,

रिश्ता कोई भी हो महज़ चलताऊ रह जाता है।

ये हमारी आपकी सबकी जिम्मेदारी है

कि रिश्ते हैं तो रिश्तों की कद्र होनी चाहिए

रिश्तों में बेकद्री की कहानी न होनी चाहिए

रिश्तों में आत्मीयता और विश्वास का भाव होना चाहिए।

रिश्तों की आड़ में न स्वार्थ, न फांस या दाग होना चाहिए 

रिश्ते हैं तो रिश्तों का आधार होना चाहिए,

औपचारिकताओं के दलदल में

रिश्तों का दम न घुटना चाहिए,

रिश्ते हैं तो रिश्तों का न पटाक्षेप होना चाहिए,

रिश्ते हैं तो रिश्तों का यथोचित सम्मान मिला चाहिए

रिश्तों का सम्मान स्वाभिमान अटूट रहना चाहिए। 



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