रिश्ता-ए-भाई-बहन
रिश्ता-ए-भाई-बहन
इतने चंचल मन को बांधा है एक रेशमी धागे ने,
हंसते खिलखिलाते खुद बंध जाना तोड़ कर बंधन सारे।
क्या देखें कभी पंछियों के पास नक्शे,
जो होते इतने माहिर कि ढूंढ लेते बिन नक्शे रास्ते।
प्राणवायु ना दिखती फिर भी जीवन उसी से ही चलता,
भाई हो कितने दूर फिर भी राज बहनों का ही चलता।
नन्हे हो या मझले हो या हो बड़े भैया,
बड़े चाव से बहनों से राखी तुम बंधवाना।
टूटे ना कभी ये रिश्तो का धागा,
मजबूत ऐसे हमेशा अपना रखना इरादा।
प्यारे-दुलारे भाइयों दूर ना उनसे जाना,
चाहे हो जाए कुछ राखी के बंधन को निभाना।