रिमझिम कहानी ( विश्वास )
रिमझिम कहानी ( विश्वास )


विश्वास अपनी छोटी सी झोपड़ीनुमा खोली में ढिबरी की रोशनी में बड़ी तल्लीनता से पढ़ने में मगन था ,। रात के 2 बजे थे बाहर से कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थी मगर वह इन सबसे बेखबर बस अपनी किताब में डूबा हुआ था ।सुबह उसका 12वी का इम्तिहान था ।
माता पिता दोनों ही पिछले वर्ष महामारी की भेंट चढ़ गए थे ,तब से विश्वास अकेले ही ख़ुद को और अपनी पढ़ाई को संभाले हुए था ,बहुत सपने देखे थे माँ बाबा ने उसको लेकर ,और बड़े ही विश्वास से उसका नाम विश्वास रखा था । वो दोनों उसे बड़ा अफसर बनाना चाहते थे मगर इससे पहले की उनका ख़्वाब पूरा होता वो दोनों ही विश्वास के लिए एक ख़्वाब बन कर रह गए थे ।
विश्वास में कसम खाई कि वो माँ और बाबा का सपना जरूर पूरा करेगा ,।तबसे दिन में वह रिक्शा से बच्चो को स्कूल छोड़ता और लाता ,और बाक़ी समय मे सवारियाँ ढोता ।और रात भर अपनी पढ़ाई करता ।सोने के नाम पर बस 1 घण्टा मिलता था ।
कल की परीक्षा की पूरी तैयारी हो चुकी थी सुबह के 5 बज गए थे वह जल्दी से नहा धो कर तैयार हो गया । 6:30 बजे बच्चो के स्कूल जाने का समय था वह जल्दी से रिक्शा लेकर निकला एक एक कर बच्चो को पिक अप करके स्कूल की तरफ निकला ।तभी हल्की हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई ।सभी बच्चों को स्कूल में छोड़ वह जल्दी से घर की तरह दौड़ा तब तक बारिश बहुत तेज हो गई थी । 7 बजने वाले थे 9 बजे से इम्तिहान शुरू होना था ।घर से कॉलिज तक पहुँचने में उसे 1 घण्टा लगता है वह थोड़ा समय लेकर चलता ताकि समय से कॉलिज पहुंच सके ।लेकिन आज की बारिश को देख उसे चिंता होने लगी ।
पौने आठ बज गए थे अब वह बेचैन होने लगा था, उसे लगा आज परीक्षा छूट जाएगी ।वह लगभग रोने को हो गया ,फिर जी कड़ा कर एक टाट की बोरी सिर पर ढकी और अपनी रिक्शा उठा कर चल पड़ा बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी परीक्षा शुरू होने में महज 1 घण्टा बचा था ।वह पूरी रफ़्तार से रिक्शा दौड़ा रहा था ।रास्ते मे जगह जगह बारिश की वजह से गड्ढे हो गए थे वह कई बार गिरने से बचा ।अभी आधा घण्टा शेष था ।वह तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था ,
रास्ते में उसने देखा कि एक व्यक्ति की गाड़ी पानी मे किसी गड्ढ़े में फँसी है और वह उसे निकालने का पूरा प्रयास कर रहा है मगर गाड़ी टस से मस नही हो रही पहले तो उसने सोचा कि मेरे पास समय ज़्यादा नही है मुझे जल्द ही परीक्षा स्थल पर पहुँचना है मगर उसने अंदर के अच्छे इंसान ने उसे ऐसा करने की इजाज़त नही दी ।
वह अपनी रिक्शा से उतरा और गाड़ी के पास पहुँचा और बड़ी शालीनता से बोला सर आप गाड़ी में बैठिए मैं धक्का लगाने की कोशिश करता हूँ पहले तो वह व्यक्ति झिझका फ़िर जाकर गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश करने लगा ।विश्वास ने अपनी पूरी ताकत लगा कर गाड़ी को धक्का देना शुरू किया जल्द ही गाड़ी गड्ढे से निकल गयी वह सज्जन विश्वास को धन्यवाद देकर आगे बढ़ गए ।
विश्वास भी पूरी रफ्तार से परीक्षा स्थल की ओर दौड़ा जैसे ही गेट पर पहुँचा चौकीदार गेट बंद कर रहा था उसने भाग कर उन्हें रोका मगर चौकीदार ने एक नही सुनी और उसे बाहर धकेलने लगा ।वह रुआँसा सा होकर लगभग गिड़गिड़ाने लगा ।मगर चौकीदार ने उसे अंदर जाने से बिल्कुल इनकार कर दिया । तभी वही सज्जन नज़र आये जिनकी गाड़ी को उसने गड्ढे से बाहर निकाला था उसने जोर से सर कहकर उन्हें पुकारा ,उन्होंने सुना और गेट तक आये और बोले क्या हुआ कुछ चाहिए ।विश्वास ने विनय पूर्वक कहा ,सर मेरी परीक्षा है और मुझे बारिश की वजह से थोड़ा लेट हो गया अब ये मुझे अंदर नही जाने दे रहे ।सर प्लीज़ कुछ कीजिये ना वह हाथ जोड़कर बोला ।
वह सज्जन जो उस कॉलिज के प्रधानाचार्य थे चौकीदार से बोले इसे अंदर आने दो ।चौकीदार ने गेट खोल दिया वह अपने कमरे की तरफ भागा ।इस प्रक्रिया में 15 से20 मिनट बीत चुके थे ।उसने परीक्षक से आज्ञा लेकर अपनी सीट ली और जल्दी से पेपर करने में जुट गया ।
समय से पहले ही वह पूरा पेपर कर चुका था । कॉपी परीक्षक को देकर वह रूम से निकल गया उसे बच्चो को घर भी छोड़ना था ।
सभी परीक्षाएं उसने पूरे मनोयोग से दी ।अगले महीने परिणाम घोषित हुआ तो वह पूरे प्रदेश में अव्वल आया था ।उसकी खुशी का पारावार न रहा ।
तभी उसके दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी ,उसने दरवाजा खोला तो बाहर ,उसी कॉलिज के प्रधानाचार्य जी खड़े थे वह हक्का बक्का रह गया ।सर बड़े प्रेम से बोले " विश्वास बेटा आज तुम्हारी मेहनत और लगन देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ तुमने कॉलिज का नाम रोशन कर दिया ।
विश्वास शालीनता से बोला " सर ये तो मेरे माता पिता के आर्शीवाद का प्रताप है जो मुझे ये सम्मान मिला ।
सर बोले '" कहाँ हैं तुम्हारे माता पिता मैं उन महान हस्तियों से मिलना चाहता हूँ "!
" सर ! मेरे माता पिता इस दुनिया में नही हैं पिछले वर्ष वह महामारी की भेंट चढ़ गए थे ,मैं तो अकेला ही रहता हूँ ।
ओहहो " दुख हुआ ये जानकर ,अगर तुम्हें बुरा न लगे तो एक प्रस्ताव रखूँ तुम्हारे सामने ?
जी सर आज्ञा किजिये !वह हाथ जोड़कर बोला ।
"अगर सम्भव हो तो तुम मेरे साथ चलकर मेरे घर पर रहो ,तुम्हारी तरह मेरा भी कोई नही है ,तुम्हारी आगे की पढ़ाई मैं पूरी करवाऊंगा ।"
"लेकिन सर .......". वह समझ नही पा रहा था कि क्या करे ।
"देखो विश्वास तुम पूरी तरह से स्वतंत्र हो " मैं तुम पर कोई जोर जबरदस्ती नही करूँगा ये तुम्हारी जिंदगी है लेकिन मेरा घर तुम्हारे लिए हमेशा खुला है।"
"सर मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूँ मगर आपको भी मेरी एक बात माननी होगी आगे से आप कभी नही कहेंगे कि आपका इस दुनिया में कोई नही है।"
"ठीक है" ये सुनकर सर मुस्कुरा दिए ।
विश्वास अपना सामान लेकर अपने नए घर मे आ गया ,और पूरे जी जान से पढ़ाई में जुट गया ।
और वो दिन आ गया जब वह मजिस्ट्रेट की कुर्सी का हक़दार बना आज उसके माता पिता का विश्वास सत्य हुआ ,एक बारिश ने उसकी जिंदगी बदल दी थी ।।