STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Inspirational

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Inspirational

रहस्यमयी परदा

रहस्यमयी परदा

1 min
269

झूठ फरेब का रहस्यमयी परदा उठने लगा है

सत्य का सूरज असत्य को चीर उगने लगा है 


सियारों के मुख पर पड़े नकाब फटने लगे हैं 

इन धूर्तों का कुत्सित रूप अब दिखने लगा है 


नैतिकता के चोले में जो तपस्वी से दिख रहे थे 

उनका राक्षसी चेहरा जनता को डराने लगा है 


झूठी कसमें खा खाकर सत्ता तक वे पहुंच गए 

"कट्टर ईमानदारों" से अब मोह भंग होने लगा है 


करोड़ों के पर्दों में रहने लगा है अब आम आदमी 

"जनता दरबार" अब शीशमहल में लगने लगा है 


जनता से पूछ पूछकर काम करने की बात करते थे 

एक चैनल के खुलासे से उनका रंग बदलने लगा है 


ज्यादा पढे लिखे शासक चुनने के भी दुष्परिणाम हैं 

जनता को "चूना" लगाने में ही इनका कौशल लगा है 


कब तक मूर्ख बनोगे, अब तो संभल जाओ यारो 

किसी और ने नहीं कट्टर ईमानदारों ने तुमको ठगा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy