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Shubhanshu Shrivastava

Abstract Inspirational

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Shubhanshu Shrivastava

Abstract Inspirational

रहने दो

रहने दो

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गर दिल बेकरार हो

तो बेकरार ही रहने दो


ज़िंदगी पर सवाल हो

तो जवाबों को रहने दो


क्या फर्क है बरबादी और कामयाबी में?

ज़िंदगी एक जहाज है, पड़ावों को रहने दो


मुश्किल है गिर के उठना मगर

उठकर उन सहारों को पास रहने दो


काम आयेगी ये किस्मत की मार भी क्या

जीते–जीते इस उलझन को रहने दो


ख्वाबों में थी मंज़िल नजदीक मगर

जाग कर इन खाइयों को रहने दो


देर तक सूरज को तकते हो अगर

रात में चांदनी की ठंडक को रहने दो


क्या होगा जब मिलेगी उजाले से परछाइयां ?

इस उम्र के दिनों में उन शामों को रहने दो


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