Shubhanshu Shrivastava

Inspirational

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Shubhanshu Shrivastava

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आज़ाद

आज़ाद

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कहते हैं कि भारतवर्ष में आज़ादी की आजकल नई घटा है छायी,

जब अपने ही वीर सपूतों की निंदा करने की कुछ लोगों ने है स्वतंत्रता पायी।

अपने ही हाथों जिनसे मातृभूमि का गला घोंटा जाता है,

उन लोगों को आजकल देश में आज़ाद कहा जाता है।


रहते हैं जो उच्च दबाव में, तूफानों में, वीरानों में,

शून्य ताप से भी कम वाले उजियाले-अंधियारों में,

रहते हैं जो कई मास दूर माता के प्रेम पिता के आलिंगन से,

किलकारियां लेते अपने बच्चों के भी बचपन से,

रहते हैं वे ताकि इस देश का शीश न झुकने पाए,

ताकि कोई भटका हुआ मानव किसी रोज़ अपने साथ शांति को ही न उड़ा जाये।


अरे तुम क्या जानो आज़ादी क्या होती है!


आज़ादी का अर्थ भी जानो,

यह लो मैं बताता हूं,

भूलो इसको मत तुम अब,

तुमको प्रतिबिम्ब दिखलाता हूँ।


जानो यह संग्राम ज़रा,

समझो, अपने शब्दों को पहचानो।

आज़ादी नहीं विदेशों की,

यह भारत के अंतरतम से आई थी,

जाओ पढ़ो इतिहास ज़रा,

पढ़ो, समझ कर यह जानो,

मिली यह जब वीर मतवालों ने,

गुलामी के खिलाफ भारी धूम मचाई थी।


तब नहीं कहते थे वे उन हालात पर,

"भारत तेरे टुकड़े होंगे" चीखकर हर बात पर।

जान हथेली पर लिए खेलते थे मौत से,

चढ़ जाते थे सूली देशभक्त हंसते हुए एक जोश से।

क्या उन क्रांतिकारियों के बलिदानों को तुम भूल गए?

क्या भगत , चंद्रशेखर, बोस और सुखदेव पीछे कहीं छूट गए?


आज़ादी एकतरफा नहीं, नहीं सिर्फ यह रईसों की,

आज़ादी गरीबों की, आज़ादी वीर सपूतों की,

आज़ादी विचार बड़ा, आज़ादी आने वाली पुश्तों की,

आज़ादी माताओं की, आज़ादी हमारी बहनों की,

आज़ादी भेदभाव रहित, आज़ादी स्वाभिमानी पुरुषों की,

आज़ादी जन-जन की , पराये और अपनों की।


मगर आज़ादी यह नहीं कि लोभ में देश को अपशब्द कहते जाओ,

आज़ादी यह नहीं कि समाज में राष्ट्र-विरुद्ध दुर्व्यवहार फैलाओ।

या फिर सुरक्षा को दुश्मनों के हाथ बेचते जाओ।


इसलिए तिहार जेल के कैदी आज़ाद नहीं कहलाते हैं,

क्योंकि आज़ादी के साथ मूल कर्तव्य भी आते हैं।

और आतंकियों का समर्थन करने वालों, तुम भी आज़ाद नहीं कहलाओगे।


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