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Manju Saini

Inspirational

4  

Manju Saini

Inspirational

रेगिस्तान का बसंतोत्सव

रेगिस्तान का बसंतोत्सव

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रेगिस्तान की भूमि पर सोच रही थीं मैं

दूर दूर तक कोई रहने वाला नही था वहाँ

पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?

क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर

क्या होगा रेगिस्तान में भी बसंतोत्सव..?


हर रोज शायद बदल जाते है लोग रेत के टीले पर

मेरी तरह बैठ कर चलकर छोड़ जाते हैं पदचाप

फिर वहीं शाम सुहानी उसके बाद रात वीरानी

आखिर क्यों रेगिस्तान के टीले की यह कहानी

क्या होगा रेगिस्तान में भी बसंतोत्सव..?

पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?


क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर

जाता हुआ सूरज बिखेरता हैं स्वर्णिम छवि

मनमोहिनी सी छटा दर्शक को मोहित करती हैं

क्या होगा रेगिस्तान में भी बसंतोत्सव..?


पुनःआगमन को डूब जाता लालिमा साथ लेकर

सुबह सुहानी देने फिर से आकर्षित करता है

पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?

क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर

क्या होगा रेगिस्तान में भी बसंतोत्सव..?


लौट कर आने को रंगीन शाम बिताने को

चलती रही कदम दर कदम सोचती हुई कि

क्यों रेत के मानिंद हैं हमारी भी कहानी

कभी चमकती सी कहानी कभी बुझती सी रवानी

क्या होगा रेगिस्तान में भी बसंतोत्सव..?

पर्यटक आते व लौट जाते आखिर.. क्यों..?


क्या रेत के टीले की यहीं थी तकदीर

कब जीवन संध्या हो जीवात्मा चल दे लालिमा ले

कभी उदास शामें कभी कहकहों की सरगम

क्या होगा रेगिस्तान में भी बसंतोत्सव..?

पदचाप के चिह्न सी छोड़ती जिंदगी

बस रेत के ही मानिंद नजर आई।


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