रातों को
रातों को
था बैठा रातों को
देख रहा था चांद, सितारों को
सोच रहा था अपनी बातों को
पता नहीं क्या हुआ है ये मुझे
हंसते हंसते यूंही अचानक
होंठ रुक जातें हैं,, पलकें झुक जाती हैं
यादों में ही आंसू निकल आतें हैं
पहले तो ऐसा न होता था
ऐसे तो मैं ना रोता था।
देख रहे थे सभी इस नजारे को
तभी एक सितारों ने पूछा चुपके से
क्या हुआ इस बेचारे को
बता रहा था मैं अपना ग़म उनसे
जो कहा गया न किसी से
कि मैं भी रोता पुरानी बातों को
नींद नहीं आती ना सोता हूं रातों को
तभी चांद गुस्साया ,बोला भाया
मै बरसों से हूं यहां,देख रहा
तू तो अभी आया ,,
ये सब इस दुनिया की माया
तू ना कोई अलग आया
तभी धीरे से हवा ने गुनगुनाया कानों में
मैं भी चलती हूं इन्हीं जमानों में
झूमती हूं, इठलाती हूं
रोती हूं , मुस्कुराती हूं
राहों की धूप , छांव से गुजरती जाती हूं,,,
ये सब तो दुनिया की रीती है
ये तो ईश्वर की नीति है
आते हैं ग़म, दर्द जिंदगी में
अपनों की याद दिलाने को
दुनिया की पहचान कराने को
हो मत परेशान तू बच्चे
जो भी हैं सभी हैं सच्चे
हो मत तू परेशान बच्चे
जो भी हैं सभी हैं अच्छें।
