दो पल कि जिंदगी है
दो पल कि जिंदगी है
दो पल कि जिंदगी है
सपने देख क्यूं सोएं
जब रहना है इसी दुनिया में
चलो अपनी पहचान पिरोएं
इस चकाचौंध की दुनिया में
बूझकर परेशान क्यों होऐं
कड़वी लगती है बातें जो
याद कर निराश क्यों होऐं
दो पलो की ज़िंदगी है
फ़िज़ूल निराश क्यों होऐं
कुछ ऐसा करें जो काम का हो
जिसमे किसी का मोह नहीं
और किसी का एहसान हो
खुद की अपनी पहचान बनाएं
दुनिया में एक छाप छोडें
मिल जाना है इसी मिट्टी में
बेकार में परेशान क्यों होऐं
बीते कल को भूलकर
एक बेहतर कल पिरोऐं
दो पल की ज़िंदगी है
चलो कुछ मुस्कान पिरोऐं
दो पल की ज़िंदगी है
चलो कुछ मुस्कान पिरोऐं।
