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Lamhe zindagi ke by Pooja bharadawaj

Abstract Classics Inspirational

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Lamhe zindagi ke by Pooja bharadawaj

Abstract Classics Inspirational

रात का मुसाफ़िर

रात का मुसाफ़िर

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ए रात के मुसाफिर तू

क्यों तू अकेला चलता है

किस विरह में जलता है 

लाखों सितारों की फौज में

तू अकेला ही चमकता है

ए रात के मुसाफिर तू

क्यों अकेला चलता है


संग मुझे भी ले चल 

इस भटकती राह में

थोड़ी सी आशा की किरण 

 दिखा सकेगा तू ही मुझे

ये रात के मुसाफिर तू

क्यों अकेला चलता है


इस काली डरावनी रात में

साथी तू बन जा मेरा

तू भी अकेला है और हूं मै

 भी इस भंवर में अकेला

और अकेला ही चला जा रहा हूं

ये रात के मुसाफिर तू

 क्यों अकेला चलता है


मैं भी मुसाफिर आज भी हूं 

कल भी मुसाफिर ही रहूंगा

कभी अपनों की तलाश में

 कभी खुद की तलाश में

 आज मेरी मंजिल यहां

 कल कहीं और होगी

पर ए रात के मुसाफिर तू 

क्यों अकेला चलता है


इस जिंदगी की राह में 

कई रहवर मिले मुझे

 कुछ अकेले छोड़ के यूं ही गए चले 

पर मेरा साथी तो तू ही बना

अपनी मंजिल की तलाश में 


मैं तो आज भी भटकता हूं

ना जाने किस सफर की तलाश में

ए रात के मुसाफिर तू किस की तलाश

में क्यूं अकेला चलता है।


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