राष्ट्रप्रेम गीत (21)
राष्ट्रप्रेम गीत (21)
वो देके गये , आंसमा और जमी ।
अपना तन है , निछावर वो करके गये ।।
हमको सांसें , खुली वो हवा दे गये ।
जेल और कूप में , जाके घुट मर गये ।।
खाने पीने की चिंता , करी ही नहीं ।
फांके में उनके दिन , यूँ गुजरते गये ।।
कष्ट तन में रहे , उनने उफ न करी ।
आह उनकी जुबां से ,न निकली कभी ।।
घर के कामों की चिंता , करी ही नहीं ।
देश अपने की चिंता में, मरते गये।
चिंता से जल के तन, चिता हो गया।
जीते जी वो, हमेशा ही मरते गये ।।
यातनाएँ सहीं , पर डिगे वो नहीं ।
अपनी माता को , आजाद कर के गये ।।
धुन हमेशा ये उनके , सिरों पे रही ।
देश से वो , फिरंगी भगा के गये ।।
हम सदा ही रहेंगे , ऋणी आपके |
फूल श्रद्धा सुमन , हम चढ़ाते गये ।।
बच्चे बूड़े सभी हैं , श्रध्दावनत |
गीत गाथा सदा , उनकी गाते गये ।।