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shikha rani

Abstract

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shikha rani

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पुष्प की व्यथा

पुष्प की व्यथा

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दो तीन दिन की जिंदगी है, 

जब तक मैं डाल पर खिलती हूँ, 

मुझ पर भँवरा आता है,

प्यार से मुझे वो रिझाता है, 

तब तक लोग मेरे पास आते हैं,

मुझसे बातें करते हैं, 

मुझे तोड़ के ही गुलदस्ते से

घर को महकाते है

मालों मैं जोड़ा जाता हूँ, 


कभी भगवान के चरणों में अर्पित हुआ हूँ 

कभी आगमन में, विदाई में साझा जाता हूँ 

हर पल में लोगों को ख़ुशियाँ देता हूँ 

पर मैं जब मुरझा जाता हूँ 

तो कूड़े में फेंका जाता हूँ 

मेरी व्यथा को कोई समझ ना पाता है 

मैं मिट्टी में पली हूँ, मिट्टी में मर जाती हूँ 


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