पुरानी क़िताब
पुरानी क़िताब
मैं आज पुरानी किताब ले आया
नई भी मिल रही थी उतने पैसों में
पर मैं पुरानी ले आया।
जब पन्ने पलट के देख रहा था
पुरानी क़िताब से उम्मीदों की,
अहसासों की, जीवन की
कर्मों की, व्यवहार की, सभ्यता की
शालीनता की, सम्मान की महक
आ रही थी।
नई अपने ही अहम में,
बनावटीपन में, दिखावे की सूरत में
महकविहीन ही लगी।
पुरानी किताबो के पन्नो में जहाँ
बचपन मिला, वहीं बड़ो का अनुभव मिला,
ज्ञान का सागर मिला, इंसान का आदर मिला।
नई तो बस नई दुल्हन की तरह सजी-धजी
रखी थी जिल्द के भीतर इठलाती हुई।
पुरानी क़िताब के स्पर्श में कोमलता है,
अपनापन है, लगाव है।
नई तो बस अहम के खुदरेपन में
मगन चुभन को तैयार है।
पढ़ते-पढ़ते पुरानी क़िताब BC
तक जी आया हूँ,
सीने पर रख सुकून की नींद भी
आ गई अरसे बाद।
नई से तो बस आंखे जलती रही देर रात
मैं आज पुरानी क़िताब ले आया
नई क़िताब को बदले में दे आया।