बसन्त..फूल..आकर्षण
बसन्त..फूल..आकर्षण
"बसन्त"
तुम्हें बसन्त पसन्द है
तुम पेड़ो को देख खुश होती हो
पेड़ जिन की शाख़ों पर
नए कोंपल निकल आए हैं
जब तुम शाखों पर निकले
कोंपल देखती हो
तुम्हारे गाल लाल हो जाते हैं
फूलों की भाँति
तुम्हें प्रेम हो चुका है
पेड़ से, कोंपल "फूल" से
"फूल"
फूल जो खिलकर मोहक,
सुगन्धित हो गए हैं
तुम उन्हें एक टक देख रही हो
तुम्हें अहसास तक नहीं हुआ कि
तुम स्वयं फूल सी खिल रही हो
फूल का रंग-रूप, सुगन्ध
तुम्हें सम्मोहित कर रहा है
जिस प्रकार तुम आकर्षित हो
रही हो प्रकृति की तरफ
वो भी मोहित हो तुम्हें प्रेमी
सा रिझा रहा
"आकर्षण"
जैसे भंवरा आकर्षित होता है
फूल का चुम्बन लेने हेतु,
उसके मधु का सेवन करने हेतु
वैसे ही फूल आकर्षित है,
भँवरे की गुंजन से
ये प्रेम है, सम्मोहन है
जो भी है
प्रकृति के दो प्रेमियों का मिलना..
फूल का पेड़ की शाख़ों से
निकलना जरूरी हैं..
ये आकर्षण जरूरी है,
ये प्रेम जरूरी है..."