पुराना प्यारा सा घर
पुराना प्यारा सा घर
था वह पुराना प्यारा सा मकान
जिसको मां बाप ने अपनी सारी जमा पूंजी
खून पसीने की कमाई लगाकर बनाया।
ईट पत्थर के मकान को घर बनाया था।
मगर उसका मोल बच्चों के समझ में ना आया।
जब तक वहां रहे तब तक उन्हें अच्छा लगा।
बाहर निकले नौकरी धंधा पढ़ाई परदेश।
तो उनको घर जी का जंजाल लगने लगा ।।
उस घर की कीमत पैसों में होने लगी
इतने करोड़ तो मिल ही जाएंगे ।
बेच के नए दो मकान ले लेते हैं।
अच्छी सोसाइटी में फ्लैट लेंगे।
पूरी एमेनिटीज के साथ रहेंगे।
यहां क्या धरा है।
नहीं जानते मां बाप के दिल पर क्या गुजर रही है।
उन्हें इस से कुछ लेना देना नहीं है।
ऐसी बातें करते हुए उन्हें मां बाप का खून पसीने से बनाया हुआ।
एक-एक ईंट से प्यार से सजाया हुआ मकान नजर ना आया।
उन्हें तो बस उसमें पैसे ही दिख रहे थे।
मगर जब उनके मां बाप ने बोला तुमको
जो करना है अपनी कमाई से करो भाई।
हमको यही रहने दो हम अपने घर में ही खुश हैं।
जाओ अपनी खुशियां अपने आप ढूंढो।
अपना घर अपने आप बनाओ
तभी तो उसका मोल समझ आएगा।
बच्चों का मुंह छोटा सा हो गया।
और वे वहां से अपना सा मुंह लेकर निकल गए।
और पुराना मकान अपनी जगह पर सलामत रहगया।
मां बाप ने कहा यह घर तुम्हारा है।
जब तक हम हैं तब तक हमारा है।
जब कभी थक जाओ तब विश्राम करने आ जाना बच्चों।
मगर इस को बेचने की बात ना करना तुम।
नहीं तो तुम्हारे लिए कोई जगह यहां नहीं है।
यह खाली ईंंट पत्थर का मकान नहीं यह हमारी भावनाओं का
प्यार का और विश्वास का और ईश्वर वास का घर है।
जो सबके लिए खुला है।
अतिथि देवो भव यहां रहता है।
अब यह तुम्हारे ऊपर है तुम अतिथि जैसे
आते हो या घर को अपना मानते आते हो।
घर हमेशा तुम्हारा ही रहेगा अगर मन में सद्भाव लाते हो।