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Sudhir Srivastava

Inspirational

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Sudhir Srivastava

Inspirational

पत्र

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प्रिय बहन

स्नेहिल आशीर्वाद

 विश्वास है कि तुम सपरिवार स्वस्थ प्रसन्न होगी। विगत काफी समय से तुम्हारा कोई समाचार नहीं मिला। जिससे चिंता हो रही है। तुम किसी बात का जबाव भी नहीं दे रही हो। समझ में नहीं आता ऐसा क्यों है?

अगर कोई नाराज़गी या शिकायत है भी ,तो तुम्हें बोलना चाहिए था। मौन हर समस्या का हल नहीं हो सकता। हालांकि कि मुझे यकीन है कि तुम नाराज़ हो ही नहीं सकती,तुम्हारी अपनी विवशता हो सकती है। पर मन बहुत उद्गिन रहता है।मन में तुम्हारा चित्र चलचित्र की भांति घूमता रहता है।

छोटी हो तो शिकायत भी नहीं कर सकता, बस चुपचाप आंसू बहाकर रह जाता हूं। तुम खुद इतनी बड़ी और समझदार हो कि मैं तुम्हें क्या समझाऊंगा। मगर तुम्हारी दुश्वारियों को जानने के बाद तुम्हारे हौसले की तारीफ जरूर करुंगा। इतने विषम परिस्थितियों के बाद भी खुद को संतुलित रख पाना बहुत बड़ी बात है।

लेकिन इतना जरूर है कहूंगा कि तुम भले ही कितनी बड़ी हो जाओगी, मेरे लिए वही नन्हीं सी नटखट प्यारी सी गुड़िया ही रहोगी। परिस्थितियों पर किसी का वश नहीं होता। हो सकता है कि उन परिस्थितियों के चक्रव्यूह में तुम्हें भाई याद ही नहीं रहता हो।या हो सकता है कि तुम्हें खुश रखने की चाह में तुम्हें जब तब परेशान करता रहा, शायद तुम्हें अच्छा नहीं लगता होगा।

 पर तुमने जितना स्नेह लुटाया है उसे भूलकर मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं कर सकता। रिश्तों की मर्यादा के दायरे को नजरंदाज कर पाना संभव तो नहीं है, पर मैं उलाहना देकर तुम्हें दुविधा में नहीं डालूंगा, क्योंकि तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी करने को सदैव तत्पर रहा हूं। तुम जो भी सोचती हो, तुम्हारी अपनी सोच हो सकती है। परंतु मेरा उद्देश्य हमेशा तुम्हारी खुशियां हैं।

तुम्हारी खुशी के लिए मैं हर पीड़ा बर्दाश्त कर लूंगा, और ऐसा कुछ भी करने के बारे में सोच भी नहीं सकता , जिसमें हमारी बहन की आँखों में आँसू आये।

 माना कि मेरे बहुत सारी कमियां तुम गिना सकती हो, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता, पर मैंने कोई भी ऐसा काम कभी नहीं किया, जिससे किसी को कष्ट हुआ हो। फिर भी अन्जाने में कभी कुछ हुआ हो तो मुझे पता नहीं। फिर भी यदि तुम्हें ऐसा महसूस भी हो रहा है तो बड़ा होकर भी मैं तुम्हारे कदमों में सिर झुका कर बिना किसी तर्क के हर सजा भी सहने को तैयार हूं।

कहना नहीं चाहता था, फिर भी कहना पड़ रहा है कि हम शायद अब कभी मिल न पाएं, क्योंकि बीते कुछ समय से मुझे ऐसा लगता है कि अब मेरे पास समय शेष नहीं है। फिर भी तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मेरी आत्मा भी तुम्हारी खुशियों की ही प्रार्थना करेगी।

 ये मेरा दुर्भाग्य ही है कि जितना में तुम्हें खुश रखने की कोशिश करते हुए सब कुछ विष की तरह पीता जा रहा हूं , उतना ही तुम्हारे स्नेह से दूर ही होता जा रहा हूं।

बस अंत में सिर्फ यही कहूंगा कि तुम्हें देने के लिए मेरे पास सिर्फ आशीर्वाद है और हमेशा की तरह आज भी झुकाने के लिए अपना सिर।

 ढेर सारी शुभकामनाएं। सदा स्वस्थ रहो, मस्त रहो। हो सके तो वहीं से ही अपना स्नेहाशीष देना चाहो तो दे देना।

 तुम्हारी खुशियों के लिए सतत प्रार्थना के साथ पुनः आशीर्वाद


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