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Krishna Khatri

Abstract

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Krishna Khatri

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पथ में उनके !

पथ में उनके !

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जब भी मिलता है 

आसमां ज़मीं से 

तो लगता है ऐसे 


जैसे मुहब्बत में

होकर बेकरार

चूम रहा है वो 


अपनी मुहब्बत को 

मुहब्बत भी तो उसे

भर लेती है 

बाहों में अपनी 


तब

शर्मा जाता है सूरज भी 

छुप जाता है 

मां के आंचल में 

फिर चांद चुपके से 

निकल आता है


मां के आंचल से 

और दूर से 

बिखेरता है चांदनी 

उजाला कर देता है 

पथ में उनके ! 


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