प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
झुर्रियों के झुरमुट से
झाँकती, झीनी सी दृष्टि,
और काल के झंझावात से
झुकी हुई कमर को,
प्रतीक्षा है किंचित ..
पगडंडी पर, किसी के
लौटने की .... !
इस हाशिये सी सीधी
भले ही भूसे के गट्ठरों सी,
भूली बिसरी हो चली हैं
यादें उसकी, किन्तु
मिलन की आतुरता,
हुई नहीं विभक्त !
हाथ में थामे ,
दण्ड सी सशक्त !
फुस्स साइकिल सा
हो जाता है जीवन
आस बिना,
इसी लिए, सिरे खुले है
दोनों राहों के,
और निगाहों के,
कोहरे के कफ़न में
लिपटी आशाएं,
पिण्ड नहीं छोड़तीं,
उम्र मुँह नहीं मोड़ती !
मील के पत्थर सी,
अड़ी रहती है
जस की तस ,... बस !
हरी रहती हैं उम्मीदें !
डबडबाई रहती प्रतीक्षा
सभी पाप-पुण्यों की, समीक्षा !
