प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
आज करूँगी अपने मन की,
चाहे बिगड़े मम्मी पापा।
चाहे बिगड़े दुनिया सनकी।
घर से निकल पड़ूँगी बाहर,
सैर करुँगी निर्जन वन की।
पर्वत पर मैं चढ़ जाऊँगी,
नहीं जरूरत है साधन की।
मित्र बनाऊँगी चिड़ियों को,
कथा सुनूँगी मेघ सघन की।
क्यूँ लड़की पर बंधन इतने,
खोज करूँगी मैं कारण की।
मैं जब कर पाऊँगी ऐसा,
मुझे प्रतीक्षा है उस क्षण की।
