पृथ्वी बीमार!
पृथ्वी बीमार!


जब जब तुमने है घाव दिया,
तब तब मैंने है बर्दाश्त किया
जब भी तुमने थी चोट लगाई,
हर बार मैंने खुद मलहम लगा ली
जैसी करनी वैसी भरनी,
हद्द से ज्यादा बढ़ रही थी गर्मी
कहीं पे सूखा, कहीं पे बाढ़,
फिर भी न सुना तूने मेरी फरियाद
इस बार ना है ये मेरे बस का,
खयाल रखो तुम बस अब खुद का
मैं नहीं कुछ भी कर सकता,
तुमको है बस घर पर रुकना
बस कुछ ही दिनों में मैं फिर से निखरा,
शीतल हुआ जल और हवा साफ़-सुथरा
बढ़ता प्रदूषण हो गया कम़,
सूरज की किरणें होने लगी नम
अब शायद तुम मेरे हालात समझ लो,
पृथ्वी भी हो सकता है बीमार, ये जान लो!