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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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प्रताप की जीवनी

प्रताप की जीवनी

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शक्ति के मद में अकबर भूल गया था

एक सिंह से वो फिझुल उलझ गया था 

शेर को स्वर्ण-पिंजरे का प्रस्ताव दे बैठा था

पर प्रताप को स्वर्ण पिंजरा क़बूल न था


उनकी रगों क्षत्राणी का खोलता खून था

जैवन्ताबाई और उदयसिंह का वो लाडला सपूत था

संधि हेतु भेजा अकबर ने मानसिंह को

प्रताप ने लात मारी गुलामी के हाथी को


बोला प्रताप मर जायेंगे,

गुलामी का चारा हम न खायेंगे

तुझे खाना है चारा तू खा

और अकबर के आगे दुम हिला 


अंततः हल्दीघाटी का युद्ध मंजूर हुआ था

अकबर का सेनापति मानसिंह नियुक्त हुआ था

18 जून 1576 को महाप्रलय हुआ था

इसी दिन हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था

शेरों का लाखों गीदड़ों से सामना हुआ था


शुरु में शेरो ने गीदड़ों का बहुत शिकार किया था

एकबार तो मानसिंह भी बन गया चूहा था

मेवाड़ी योद्धाओं का आज शेरों का रूप धरा था

पर गर्दिश ने शेरों को बुरी तरह से झकड़ लिया था


प्रताप की जगह झाला मानसिंह ने युद्ध किया था

अपने राजा के लिये उसने बलिदान दिया था

शक्तिसिंह को अब गलती का अहसास हुआ था

भाई के गले लग उसकी आंखों से खूब नीर बहा था


मुगलों की सेना ने प्रताप का बहुत पीछा किया था

सामने चलते-चलते एक बड़ा नाला आया था

मुगल सैनिकों का दल यह देख बड़ा हर्षाया था

पर प्रताप अपने दोस्त चेतक पर सवार होकर आया था


चेतक ने कर दिया उस नाले को छोटी सी काया था

नाले को पार करने से वो बहुत घायल हुआ था

पर स्वामी को सुरक्षित पहुंचाकर ही मौत को उसने छुआ था

उसकी वहां समाधि बना प्रताप भी बहुत रोया था


आज भी उसकी वहां समाधि बनी हुई है

स्वामिभक्ति की जिंदा वो मिशाल बनी हुई है

प्रताप का एक स्वामीभक्त हाथी भी था

रामप्रसाद उसका नाम था

प्रताप से उसका प्यारा नाता था


दस-दस हाथियों पर वो भारी पड़ता था

पर धोखे से मानसिंह उसे कैद लिया था

अकबर उसे देख बहुत खुश होता है

पर रामप्रसाद बड़ा स्वामीभक्त होता है


खाना-पीना वो छोड़ देता है

मौत का दामन भी वो ओढ़ लेता है

स्वाभिमानी रामप्रसाद,अंततः दम तोड़ देता है

उस हाथी को देख,अकबर यह बोल देता है,


जिसके जानवर ही इतने वफ़ादार,

उसे क्या ख़ाक ग़ुलाम बनाऊंगा

उस हाथी की वफ़ादारी देख,

अकबर भी चुपके से रो लेता है


जंगलों में रहकर प्रताप ने घास की रोटी खाई थी

अपनी मातृभूमि के लिये कई राते जागकर बिताई थी

अब भामाशाह का त्याग और बलिदान आता है


वो प्रताप के चरणों मे सारी धन-दौलत बिछा आता है

ऐसे स्वामिभक्त सेवको से प्रताप फिर से मेवाड़ जीत जाता है

दिवेर के युद्ध मे अमरसिंह जौहर दिखाता है


वो महाराणा प्रताप का ही खून कहलाता है

पर चितौड़ प्रताप से एक कदम दूर रह जाता है

एक दिन धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते वक्त

प्रताप बहुत घायल हो जाता है


इससे ये शेर धरती माँ की गोद मे सो जाता है

ऐसे स्वाभिमानी देशभक्त शत्रु को देख,

अकबर को भी बहुत रोना आता है

वो भी ये बात कह जाता है,

राणा प्रताप तेरा जैसा राजा


क़भी-कभी इस धरती पर जन्म लेने आता है।


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