STORYMIRROR

Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract

3  

Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract

Promt 9- निर्भय जीवन

Promt 9- निर्भय जीवन

2 mins
12.3K


सामने खड़ी है बस

मैं देख सकता उसे बस

जाऊँ कहाँ पता नहीं

घूमता रहा इन सड़कों पर

किसी ने कुछ कहा कर दिया

जो मिला जिंदगी उसी में कट गया

जिंदगी अपने राह चल रही थी।


कहते हैं सब रहो घर के अंदर

पूरी धरती ही है मेरा घर

अम्बर ने छाया मेरे घर का छत

कहीं किसी रैन बसेरे में कटती रात

ये पोटली ही है मेरा पूरा खजाना

इसे सीने से लगा कहीं आना जाना

रात में तकिया बना सो जाता।


ऐ बस, जा तुझे जहाँ है जाना

मेरा नहीं कहीं ठिकाना

पुलिस आएगी दो डंडा लगाएगी

फिर जहाँ ले जाएगी चला जाऊँगा

कहीं रखे सर ऊपर एक छत होगा

सुबह शाम दो रोटी नसीब होगा।


बैठे-बैठे मैं कभी नहीं खा सकता

बदले में कुछ भी कहें कर सकता

कोरोना ग्रसितों की सेवा कर दूंगा

मुझे मरने का कोई डर नहीं

जिसके पास कुछ नहीं

भगवान भी उसे नहीं मारता

भगवान भी उसे नहीं मारता।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract