प्रकृति प्रेम
प्रकृति प्रेम
हर पल निखरे रूप तुम्हारा,
मानो कलरव समुद्र की तरंग।
लगती है शीश शीतल छाया,
प्रफुल्लित हृदय की किरण उमंग।
पल -पल तेरा प्रेम निराला,
मैं निश्छल प्रेम न कर पाया।
उसने ही है मुझे सम्भाला,
ईश्वर महिमा कौन जान पाया।
समय -समय पर आती हैं ऋतुयें,
दिव्य दृश्य की छटा दिखाती।
बगिया फल फ़ूलों से सज जाती है
भँवरे फ़ूलों पर इठलाते हैं।
