STORYMIRROR

रंजना उपाध्याय

Abstract

3  

रंजना उपाध्याय

Abstract

प्रकृति प्रेम

प्रकृति प्रेम

1 min
301

हर पल निखरे रूप तुम्हारा,

मानो कलरव समुद्र की तरंग।

लगती है शीश शीतल छाया,

प्रफुल्लित हृदय की किरण उमंग।


पल -पल तेरा प्रेम निराला,

मैं निश्छल प्रेम न कर पाया।

उसने ही है मुझे सम्भाला,

ईश्वर महिमा कौन जान पाया।


समय -समय पर आती हैं ऋतुयें,

दिव्य दृश्य की छटा दिखाती।

बगिया फल फ़ूलों से सज जाती है

भँवरे फ़ूलों पर इठलाते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract