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Madhuri Kumar

Abstract

5.0  

Madhuri Kumar

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प्रकृति की सीख

प्रकृति की सीख

1 min
203


आज फिर से कुछ बयां 

कर रही है ये घनघोर घटाएं,

ये रिम झिम बरखा की बूँदें,

शाखों पर आयी हरियाली,

समI बांधती है निराली,

हरियाली प्रकृति का रूप

कुछ नया सा मंज़र है सजाये..

उठो पथिक आज चलना है तुम्हें,

इन हरियाली रास्तों पर, 

इन हवाओं के मौजों पर,

भीगी सड़कों की निशानियों पर,

इन रिमझिम फुआरों की आगोश में,

बारिश के बाद की नयी धुप में,

ढलती शाम की सुनहरी लIली में,

जीवन की एक नई रचना के साथ..

जग को सुनाओ एक नए रीत की बात,

सीखो प्रकृति के हर रूप से जीना,

सीखो अपनी अनुपम सुंदरता को बिखेरना,

अपने होठों पर लाओ अर्थपूर्ण कोई राग

झूम उठे जिससे बगिया और बाग़…

वंदन हो हर रचना की

अभिनन्दन हो हर रूप की

जाग उठे इंसान और करे धरती का नमन 

शांत, सुरक्षित रहे हमारी संतति का चमन 


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