समर्पण
समर्पण
पूजा की थाली, आरती की घंटी,
दीपक की लौ और शंखनाद,
इस पर क्यों है हम में छिड़ा विवाद ?
कौन सी पुकार, कौन सी मनुहार,
कौन सी ध्वनि सुनते हैं भगवान ?
कौन सी अर्चना का प्रारूप
स्वीकार करते हैं सर्वशक्तिमान ?
क्यों करता है मानव इन
बातों पर इतना अभिमान ?
फूलों को देखो कैसे खिलते हैं
अर्पण के लिए,
मेघ को देखो कैसे बरसते है
जीवन के लिए,
निर्झर को देखो कैसे बहते हैं
समर्पण के लिए,
कलकल करती नदियों को देखो
कैसे चलती है तर्पण के लिए।
चाँद और सूरज को देखो
कैसे चमकते हैं संतर्पण के लिए।
सीखो फूलों से निर्मल,
निष्कपट, निश्छल जीना,
सीखो मेघ से उपहार देना,
झरनों से सीखो सक्षम होना,
नदियों से सीखो अविरल बहना,
चमकते चाँद और तारों से सीखो जलना।
इन अनुपम कृतियों का तुम करो नमन
इस विराट स्वरुप का तुम करो मनन
अंतरात्मा की आवाज़ का करो अवलम्बन
सफल हो जायेगी तुम्हारी आराधना
जाग्रत हो जाएगी तुम्हारी चेतना।
