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mahendra dewangan Mati

Abstract

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mahendra dewangan Mati

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प्रकृति की लीला

प्रकृति की लीला

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देख तबाही के मंजर को, मन मेरा अकुलाता है।

एक थपेड़े से जीवन यह, तहस नहस हो जाता है ।।

करो नहीं खिलवाड़ कभी भी, पड़ता सबको भारी है।

करो प्रकृति का संरक्षण, कहर अभी भी जारी है ।।

मत समझो तुम बादशाह हो, कुछ भी खेल रचाओगे।

पासा फेंके ऊपर वाला, वहीं ढेर हो जाओगे ।।

करते हैं जब लीला ईश्वर, कोई समझ न पाता है ।

सूखा पड़ता जोरों से तो, बाढ़ कभी आ जाता है ।।

संभल जाओ दुनिया वालों, आई विपदा भारी है।

कैसे जीवन जीना हमको, अपनी जिम्मेदारी है ।।

 


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