प्रकृति का यह खेल
प्रकृति का यह खेल
प्रकृति का यह खेल कैसे
समझा जाए,
यह दुनिया सरफिरी सी है,
मेरे समझ में तो कुछ भी न आये
जग का यह खेल निराला,
जीवन में ही पीना पड़ता है
अपने दुष्कर्मो का प्याला,
अमीर - ग़रीब गोरा -काला,
लड़का - लड़की, जात- पात,
मान - मर्यादा,
इंसानों में से यह कमी दूर
न जाए,
मेरे समझ में तो कुछ भी
न आये
जीवन से हारी मैं
न जीयूं ज़िन्दगी सारी मैं,
कुछ ऐसा हुआ जो बन गया
मेरा अतीत ,
अब यह भुला न जाए ,
मेरे समझ में तो कुछ भी न आये
