STORYMIRROR

KOMAL YADAV

Abstract

2  

KOMAL YADAV

Abstract

प्रकृति का यह खेल

प्रकृति का यह खेल

1 min
295

प्रकृति का यह खेल कैसे

समझा जाए, 

यह दुनिया सरफिरी सी है,

मेरे समझ में तो कुछ भी न आये


जग का यह खेल निराला,

जीवन में ही पीना पड़ता है

अपने दुष्कर्मो का प्याला,

अमीर - ग़रीब गोरा -काला,

लड़का - लड़की, जात- पात,

मान - मर्यादा,

इंसानों में से यह कमी दूर

न जाए,

मेरे समझ में तो कुछ भी

न आये 


जीवन से हारी मैं

न जीयूं ज़िन्दगी सारी मैं,

कुछ ऐसा हुआ जो बन गया

मेरा अतीत ,

अब यह भुला न जाए ,

मेरे समझ में तो कुछ भी न आये



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract