परिस्थितियाँ और मैं !
परिस्थितियाँ और मैं !
मैं नहीं जानता,
परिस्थिति विशेष को कैसे जिया।
थोड़ा मेरा विश्वास, थोड़ा प्यार,
उनका जो पा लिया।
मेरे चेहरे पे ग़म छुपा,
मुस्कुराना जो सिखा दिया।
शायद इन्ही लम्हों ने,
मुझे इस काबिल बना दिया।
जिसकी न की कभी तैयारी,
उनमें सफल होना सिखा दिया।
मैं नहीं जानता,
परिस्थिति विशेष को कैसे जिया।
जैसे भी जिया,
उनकी यादों में ही जिया।
दूर होने की होड़ में उनसे,
इश्क़ कुछ ज्यादा ही कर लिया।
कैसे बताऊँ यारों,
उन क्षणों को कैसे जिया।
