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Krishna Bansal

Abstract

4.3  

Krishna Bansal

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परिस्थिति

परिस्थिति

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मान लीजिए 

कोई दु:खद या अवांछित 

स्थिति बन गई है 

आपके जीवन में 

यह समय नहीं है 

यह सोचने का 

क्यों आई 

यह परिस्थिति 

कैसे आई 

कब जाएगी 

यह वक्त नहीं है 

ज्योत्षियों, पंडितों, बाबाओं के पास भागने का 

न किसी आडंबर में पड़ने का।


सोचने की बात यह है 

स्थिति से उभरा कैसे जाए 

इससे निपटा कैसे जाए 

इसे सुधारा कैसे जाए। 

इसी में हमारी भलाई है 

इसी में हमारी होशियारी है।


हर समस्या का हल 

समस्या की जड़ में ही है।


ज़रा सोचिए 

आपके लाख प्रयत्न करने के बावजूद स्थिति नहीं सुधरती 

हमें स्वयं को नकारात्मकता से प्रभावित किए बिना 

उसका सामना करना है।

 

स्थिति के अनुसार ढालना है जैसे जल शक्ल ले लेता है 

लोटे की शक्ल के मुताबिक।



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