प्रीत कर प्यारे,
प्रीत कर प्यारे,
प्रीत कर प्यारे,
प्रीत परमात्मा से, प्रकृति से
प्रीत धरा से, जिससे जुड़ा है
प्रीत नभ से, जो तेरे लिए खुला है,
इस मनोहर दृश्य को सहजता से निहार
अपने नेत्रों में जमा कर ले ये रंग
फिर बंद कर और अनतरमन में उतार,
छोड़कर सब जग के सोच -विचार
खेल इन रंगो से सारे.. प्रीत कर प्यारे
अब तक जीता आया, औरों के लिए
अब " स्वंय " से मिलना सीख ले
सही - गलत का छोड़ आकलन
" ध्यान " धरना सीख ले,
होगा वही जो " ईश्वर " मान्य है
कर्म"सही "है तेरा, तो तु धन्य है,
समय की दौड़ से हो स्वतंत्र
"ठहराव" को स्वीकार कर
हे प्यारे तू प्रीत कर
प्रीत कर प्यारे, तू प्रीत कर !
