"प्रीत के रंग"
"प्रीत के रंग"
होली के रंग में रंगकर खुद को,
नकली मुख़ौटे उतारते हैं,
केसरिया रंग में डुबोकर खुद को,
आईने में जरा निहारते हैं,
चलो,आज फिर से रिश्तों को,
प्रीत के रंग से संवारते हैं।
मीठे व्यंजन, मीठी शरारतें,
मीठी मनुहार स्वीकारते हैं,
कुछ नये बहाने, नये तराने लेकर
बचपन को फिर से पुकारते हैं,
चलो, आज फिर से रिश्तों को,
प्रीत के रंग से संवारते हैं।
कठपुतली बन फिरते रहते ताउम्र,
आज वो चोला उतारते हैं,
माथे की सलवटों, फ़िक्र, शिकन,
भांग में घोट डकारते हैं,
चलो, आज फिर से रिश्तों को,
प्रीत के रंग से संवारते हैं।
