परीक्षा
परीक्षा
काश ! मैं भी ले पाता...
परीक्षा की परीक्षा..
कसता उसे हर कसौटी पर
जाँचता..
उसकी सच्चाई ज्ञान, योग्यता..
मैं भी दे पाता उसे अंक,
निकालता उसका प्रतिशत.
हानि लाभ. गुण अवगुण..
उसको भी मिलता..अनुक्रमांक..
वो भी लगती लाइन में.. बैठती ..
कतारबद्ध.
उसे भी मिलता
जीवन का प्रश्नपत्र !
वो भी सकपकाती...
घबराती...कँपकँपाती..
लिखती..
कुछ सही कुछ गलत..
करती इंतजार..
परिणाम का..
वही असमंजस..
वही चिन्ता की रेखाएँ होतीं..
उसके भी माथे...
तब लगता..
ये हुयी परीक्षा..
पर ये सब
काश ! ही रहेगा..
क्योंकि हम नहीं हो पाते खाली..
अपनी ही परीक्षाओं से..
बचपन, जवानी, कमाई की परीक्षा..
अच्छे पुत्र, पति, पिता की परीक्षा...
अच्छे नागरिक,
समाज, देश की परीक्षा...
दूसरों के सुख-दुःख का..
ख्याल रखने की परीक्षा..
और इन्हीं को
देते-देते भूल जाते हैं..
*अपना अस्तित्व*...
और फिर अन्त में लग जाते हैं...
एक और परीक्षा में..
अपने *अस्तित्व* को बचाने में..
रह जाती है बहुत दूर..
परीक्षा की परीक्षा.....