प्यारा हिन्दुस्तान लिखूँ
प्यारा हिन्दुस्तान लिखूँ
न राग लिखूँ, न प्रेम लिखूँ,
न मैं वियोग के गान लिखूँ..
लिख सकूँ अगर मैं कुछ थोड़ा,
तो प्यारा *हिन्दुस्तान* लिखूँ।
जिस तरह वेद सब गाते हैं,
गीता, कुराण, तुलसी वाणी,
माथे का नूर बनी मीरा,
ज्यों बुद्ध सूर सन्मति-वाणी।
आडम्बर को फेंक कबीरा,
भूषण विलास रसखान लिखूँ ,
लिख सकूँ ........
जिसका रक्षक है हिमपर्वत,
गोदी में गंगा बहती है।
जन-गण के हृदयाँगन में,
पावनता पूरी रहती है।
जो द्रोह कपट से रहे दूर,
निश्छल मन का सम्मान लिखूँ,
लिख सकूँ.....
जिसकी पुण्यकथा पढ़-सुन
बालक जवान होते हँसकर,
ले बरछी, ढाल, कृपाण, असि,
हुँकार भरे पौरुष भरकर।
जो शीशकटा रक्षा करते हैं,
उनका बस यशगान लिखूँ,
लिख सकूँ......
तन-मन से जो बड़ी सरल
या प्रेम लता-सी लगती है।
आ जाये समय तो वो ज्वाला
शत्रू पर भारी पड़ती है।
हैं जहाँ बेटियाँ सरल-कठिन,
हम सबका है अभिमान लिखूँ,
लिख सकूँ......
है नहीं भेद की कुटिल चाल,
सब आपस में मिलकर रहते,
जीवन विकास के हर पथ पर,
सब साथी बनकर ही चलते।
आफत काँपे डर से उनके,
रे ! 'ओजस्वी' गुणगान लिखूँ,
लिख सकूँ.......
