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Ranjana Mathur

Abstract

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Ranjana Mathur

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प्रहलाद रूपी सत्य है होली

प्रहलाद रूपी सत्य है होली

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नन्ही-सी

नवल-धवल

नूतन अँखिंयों में

कौंध रहे थे


अनबूझे से प्रश्न कई

नन्हा बोल उठा

सुन मैया !


क्या होती है होली ?

माँ ने कहा

रंगों का मेला

जिसमें सब होते हमजोली।

बोला बेटा

करते क्यों हैं होलिका दहन ?


मैया ने समझाया

ओ लाल मेरे !

करते इसमें हम बैर द्वेष सारे दफ़न

सुरक्षित रहता

प्रहलाद रूपी सत्य


और इसी की विजय का पर्व है

होली

जो है स्नेह प्रेम के रंगों की रंगोली

क्योंकि

वो कहते हैं न बेटा

कि सत्यमेव जयते।


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