प्रेमचंद
प्रेमचंद
शुभ दिन था वो इक्कतीस जुलाई स्थान था लमही, उत्तर प्रदेश,
डाक मुंशी अजायब राय के घर पैदा होकर आया एक रत्न।
बालक था कुशाग्र बुद्धि व परिचय बनाया मानो है सरस्वती पुत्र।
माता आनंदी देवी का साया सिर से उठा , उम्र थी जब महज सात।
पिताजी ने विवाह करवा दिया बेटे का जब उम्र थी पंद्रह साल।
साया सिर से पिता का भी उठ गया जैसे ही किया सोलह पार।।
संघर्षमय बहुत रहा प्रारंभिक जीवन पैनी की जिसने कलम की धार!
धनपत राय श्रीवास्तव उर्दू व फारसी से आ पहुंचे हिंदी पर।
अध्यापन से बढ़ते बढ़ते बन गए डिप्टी सब इंस्पेक्टर।
हिंदी प्रेम ने साथ न छोड़ा लिखते गए कथा अनेक प्रकार।
नाम मुंशी प्रेमचंद अपनाकर, उपन्यास जगत में लाए क्रांति अपार।
'सेवासदन' से पहुँचे 'प्रेमाश्रम',दिलाया 'निर्मला' को सम्मान।
'गबन' करने वाले संग 'रंगभूमि' पहुंचे, कर डाला 'गोदान'।
लेखनी ने जब कहना शुरू किया लिखे कहानी एक से बढ़कर एक।
'आँसुओं की होली' खेलकर 'आहुति' अपने 'अभिलाषा' की दी।
'अमावस्या की रात्रि' को 'इज्जत का खून' करते देख 'नमक का दरोगा' बुलाया।
'अमृत' सम उपदेश दिया उद्धार 'घरजमाई' का करके 'जादू' सब पर चलाया।
'ईदगाह' से निकल कर सबको 'ठाकुर के कुआँ ' का पानी पिलाया।
'पंच परमेश्वर' का न्याय दिया, मूल्य 'कर्मों के फल' का बताया।
'नैराश्य', 'पछतावा', 'प्रतिशोध' सम दुर्गुणों को दिखाए 'पाप का अग्निकुंड'।
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी साहित्य व संसार को १९३६ में अलविदा कह गए।
