प्रेम और कविता
प्रेम और कविता
प्रेम कविताएं नहीं बुनता
प्रेम तो डुबो लेता है
रास्ते में आई हर
पगडंडी को
देवले को
ऊंची नीची भूआकृतियों को
हां मगर जब
प्रणय के मेघ
ऊब जाते हैं
अक्षांश-देशांतरों की
एकरसता से
जब उतरने लगता है
प्रेम की बाढ़ का पानी
तब स्मृतियों की दरारों में
उग आती है कविताएं
मौसमी खरपतवार की तरह
गीले किचकिचे धरातल पर
फैलती हैं कविताएं
उभरती हैं
बरसाती काई की तरह
और चिरकाल तक
बनी रहती हैं
प्रेम के भग्नावशेषों के समान