प्रेम-अलंकार
प्रेम-अलंकार
रूप-रंग न सही आदतों से एकाकार हो जाएं,
चल हमदोनों प्रेम में रूपक -अलंकार हो जाएं !
उपमा कोई तुझको दूँ सभी तुच्छ तृण-से लगते हैं,
एक-दूजे के जीवन के काव्य-संसार हो जाएं!
मैं हूँ देह तू है आत्मा यह अतिश्योक्ति नहीं है,
रोम-रोम में प्रेम का रचना अंधभक्ति नहीं है !
अनुप्रास अपना अनंत बार आत्मार्पित कर दूँ मैं
बिना अलंकार भी कुरूप तू कभी लगती नहीं है !!
हर मंझधार में कश्ती और पतवार हो जाएं,
अपनी रचनाओं के 'पापा-मम्मी ' पुकार हो जाएं,
शब्द जो मैं बनूँ उच्चारण उसका तू बन जाये
एक-दूजे के जीवन के दोनों अब आधार हो जाएं !!