परदेश में कैसे रहे
परदेश में कैसे रहे
पूछ मत मुझको सनम परदेश में कैसे रहे
दर्द ही बस दर्द परदेशी बने सहते सहे
था नहीं कोई हमारा मीत मन का तो वहाँ
पास मेरे बैठकर जो प्रीत की बातें कहे
बाप माँ भाई बहन की याद आती थी बहुत
प्रेम उनका याद करके आँख से आँसू बहे
चाहिए सबको वहाँ पर जीत ही बस जीत ही
हार जो जाता कसम से आग के जैसे दहे
है बहुत रुपया मगर चैन-वो-सकूँ मिलता नहीं
जिंदगी अक्सर वहाँ उस वेग से चलती रहे
एक दूजे को नहीं पहचानता कोई वहाँ
मुश्किलों में साथ देकर हाथ जो अपना गहे
देश अपना छोड़ परदेशी कभी बनना नहीं
बन निवासी जिंदगी परदेश में क्योंकर ढहे
हाँ, बहुत अच्छा हमारा देश है भारत वतन
कीर्ति यश वैभव तरक्की सब मिले भगवान है।