परछाई
परछाई


हर बार छल किया तुमने,
अब नहीं छलने वाली हूँ।
छोड़ चली हूँ अतीत की परछाई को,
सपनों के आकाश में उड़ने वाली हूँ।
बहुत तरसा है अपने ही चीजों के लिए,
अब अपने अधिकार के लिए लड़ने वाली हूँ।
सड़ी-गली परम्पराओं को तोड़ के,
एक नया रंग जीवन में भरने वाली हूँ।
ठान लिया है मैंने हर बाधा पार करके,
नित नयी-नयी मंजिल गढ़ने वाली हूँ।