प्रभु
प्रभु
बगल से गुज़र गए, मुसाफिर तमाम,
मैं झुक कर सलाम करता रहा।
इक टिक टिक भीतर चली, कुछ देर मेरे भी
वक़्त मगर रोज़ गुजरता रहा।
रेखा नसीब की थी ही नहीं,सीधी ना टेढ़ी,
भरोसा था तकदीर पर कुछ,
यकीन तुझ पर सौ टके करता रहा।
तू पहचाना तो होगा मुझे,
मुंह फेर चला गया या
साथ मेरे चलता रहा ?
छोड़ दिया था तूने गर,
कैसे मैं इतनी देर चलता रहा ?
हाथ तेरा होगा सिर पर ज़रूर,
इतनी दूर जो मैं चलता रहा।