पराया न घर बाप का
पराया न घर बाप का
बेटी को अधिकार दो,
करो न कन्यादान।
पराया न घर बाप का,
इसको अपना मान।
रूढ़िवाद को तोड़ के,
बात कहूं इस बार।
जब तुम संकट में पड़ो,
खुला बाप का द्वार।
सोना उसे भले न दो,
दिल में दो फौलाद।
हर संकट में साथ दो,
वह भी तो औलाद।
बेटा गर कुल दीप है,
बेटी कुल का मान।
दोनों एक बराबर हैं,
फर्क न कोई जान।
नौ-कन्या भोजन करा,
पूजा करता इंसान।
फिर कल बेटी का वही,
करता है अपमान।
बेटी का सम्मान हो,
पूजे सकल समाज।
हरपल सुख देत जो,
दुखियारी वो आज।
तू बेटी-बहना व माँ,
पत्नी तू कहलाय।
नारी से नर होत है,
तू देवी कहलाय।
तुझको जब शिक्षा मिले,
तेरा हो उद्धार।
तेरा हक तुझको मिले,
तुम आधी हकदार।
जलकर रौशन जो करे,
पूरा घर परिवार।
मोमबत्ती बनकर वो,
करती है उपकार।
इसको को न लजाइये,
महाघोर यह पाप।
बेटी घर भी आपके,
इसे समझिये आप।
