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Rakesh Sahu

Abstract

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Rakesh Sahu

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तुम आज भी नहीं आये

तुम आज भी नहीं आये

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न जाने कितने अन गिनत पल यूंही गुजर गये

देखते देखते फिर शामें ढल गए,

अब तो नीले आसमान में

 झील मिलाते तारें भी आ गये

पर तुम आज भी नहीं आये।


अक्सर रोज तुम्हारी राह देखते है

वही सड़क के किनारों की चौराहों में,

मन में हर पल उमंग सा भरा होता है

कभी ना कभी तो हम होंगे आमने सामने 

पर तुम आज भी नहीं आये।


 अब हम थक चुके है जिंदगी से

और तन भी साथ छोड़ने लगा है,

फिर भी सारे मन की वेचेनीयों को समेटे हुए

आज भी तुम्हारी राह देख रहे हैं,

पर तुम आज भी नहीं आये ।


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