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Poulomi Mukherjee

Abstract

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Poulomi Mukherjee

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पन्छियो

पन्छियो

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सुबह की हर एक दिनों में, 

जब आवाज होती हैं पन्छियों की चहचहाट,

हमें नींद से जगाती है, अद्भुत सिर्फ ये आहट। 


सुबह की हर एक दिनों में, 

जब सुनाई देती हैं, पन्छियों की दस्तक, 

पन्छियों को देखने के लिए, मुझे होता है मोहक। 


सुबह की हर एक दिनों में, 

जब पन्छियों की कोलाहल से भरे हुए हैं शहर, 

अपनी खुशियाँ सोचता हूँ उर्जा भरें स्तर पर। 


सुबह की हर एक दिनों में, 

जब जीवन का गूढ़ सिखा जाता है, 

पन्छियों को देखकर तब दुनिया बदल जाती है। 


सुबह की हर एक दिनों में, 

फिर से आती है नई कोई सोच, 

पन्छि सब गाते, चहचहाते, उन दोनों रोज। 


सुबह की हर एक दिनों में, 

मेहनत व नि:स्वार्थ प्रेम से भरी, 

नन्हीं सब पन्छि हमे सिखाते हैं दुनियादारी। 


सुबह की हर एक दिनों में, 

नई सुबह तब होती है रोज, 

जब मेरी बालकनी में मिलते हैं पन्छियों की खोज। 



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