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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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पनाह

पनाह

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माँ के गर्भ में आने से लेकर

इस दुनिया से जाने तक

हम पनाह पाते हैं,

भिन्न भिन्न लोगों से

भिन्न भिन्न परिस्थितियों के बीच

मगर महसूस नहीं करते

क्योंकि हम घमंड में जीते हैं।

धन, दौलत, सामर्थ्य की

आड़ में फूले नहीं समाते हैं,

सामने वाले को भला

कहाँ कुछ समझते हैं,

बस यही भूल करते हैं

बार बार दोहराते हैं

ईश्वर की इतनी बड़ी

पनाहगाह को भी

हम हमेशा झुठलाते रहते हैं,

औरों को पनाह देना तो दूर

विचार भी मन में नहीं लाते हैं।

मगर अफसोस कि किसी को

पनाह तो नहीं देते लेकिन

बड़े पनाह देने वालों में

अपना नाम पहले लिखाते हैं,

जिसकी पनाह में

एक एक पल बिता रहे हैं

उसे भी ठेंगा दिखाते हैं

जरा भी नहीं शर्माते हैं।


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