पिता
पिता
पढ़ी थी
एक पिता के खरचे की डायरी,
रात
सो नहीं पाया था,
बच्चों के भविष्य की खातिर
उसने
पसीना बहुत बहाया था,
बनकर एक माली
नन्हें पौधें को वृक्ष बनाया था,
जीवन की धूप-छाँव में
हरदम वह मुस्तैद नज़र आया था,
पिता बनने की जिम्मेदारी को
उसने बाखूब निभाया था,
चलता फिरता फरिश्ता
इस धरती पर मैंने पाया था।