रिश्ता पिता का
रिश्ता पिता का
पिता-पुत्र के रिश्तों पर
मैंने कलम चलाई है,
अपनी कविता के माध्यम से
गहराई रिश्तों की दिखाई है,
न पड़े धूप जिदंगी की
बेटे को
इस चिंता में नींद उसने गंवाई है,
अँगुली उसकी पकड़ अनुभवों की पूंजी
उसके साथ बटाई है,
करता शौक बेटे के पूरे
उनमें अपनी
हसरतों की छाप पाई है,
फेरिश्त है काफी लंबी
उसके त्याग की,
शब्दों में बाँधना
ढिठाई हैं,
बेटे के भविष्य को संवारने
उसने लड़ी
अंतहीन लड़ाई है।